Wednesday, April 13, 2016

सतुआन- लोकसंस्कृति के परब


स्कूली पढाई के बेर सामाजिक विषय में सभे पढले बा कि “आदमी (मनुष्य) एगो सामाजिक प्राणी ह” । अब एह वाक्य में दूगो महत्वपूर्ण शब्द बा- पहिला आदमी भा मनुष्य आ दुसरका समाज । आदमी आ समाज एक दुसरा के पूरक (पूरा करेवाला) ह । आदमी बा त समाज बा आ समाज बा तबे आदमीयो बा । आदिकाल से जब आदमी जंगल में रहत रहे त आपन सुरक्षा खातिर समूह में रहे लागल । एहिजे से परिवार, समाज आ समुदाय के विकास भईल । समूह आ झुण्ड में रहल आदिकाल से प्राथमिकता रहे । समूह में एक साथ रहत आ एक दूसरा के मदद करत समाज विकास के राह पकड़ ले ला । आपन आ समाज के आवश्यकता के पूर्ती एक दूसरा के सहभागिता से पूरा हो जात रहे । समाज के हरेक वर्ग खातिर विशेष ध्यान दियात रहे । काज-करम के आधार पे समाज बंटायिल रहे , बाकी धीरे-धीरे इ भेद धर्म आ छुआछूत से अंटा गईल । बाद में मनुवादी वर्ण व्यवस्था के दुरूपयोग खूब भईल । बाकी एह दुरूपयोग के बचावे खातिर भी ढेर उपाय कईल गईल रहल ह । एक उपाय रहल ह लोक-संस्कृति के परब मनावे के । एह लोक-परब के मनावे के पाछे समाज के हरेक वर्ग के एक सुता में बान्हे के कोशिश रहे । पूरा भारत में जगह आ सुविधा के अनुसार लोक-परब के मनावे के विधि आ समय अलग बा । बाकी सभे के पाछे एके उद्देश्य इहे बा  कि मय समाज एह परब में गुंथा जाव । ना बड़-ना छोट, ना छूत- ना अछूत, एह लोक-परब में सब भेद मिट जाव ।   


धरम के बाजारू चश्मा हटा के देखीं त जेतना भी परब त्यौहार बा , सब लोक-परब ह । सकरात, छठ, होली दिवाली, नवरात्र , सतुआन आ ना जाने केतना परब । सभे परब सामाजिक समरसता बनावे खातिर कवन विधि अपनवले, इ ध्यान देवे वाला बात बा । उदाहरण में एहिजा सतुआन पे चर्चा करब । बाकी परब में रउआ सुधि पाठक लोग अंदाज लगा लीं ।

सतुआन भा सतुआ सकरात (संक्रांति) त नामे से बुझा जाला कि एही दिन के सत्तूआ के सम्बन्ध बा । बाकी काहे , चर्चा आगे बा । बिहार (संगठित)- पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहाँ सतुआन मनावल जाला ओही दिन बंगाल में में “पैला (पीला) बैसाख” परब आ पंजाब में बैशाखी मनावल जाला । बंगाल आ पंजाब के नया साल एही दिन से शुरू होला । दक्खिन भारत में इ लोक-परब के नाम बिशु त आसाम में बिहू कहल जाला । कमोबेश भारत के हरेक जगहा इ लोक-परब मनावल जाला । सतुआन, सकरात, मेष संक्रांति, वैशाखी, पैला बैशाख, बिशु भा बिहू सभे के मनवला के पाछे एके कारण बा – नया फसल के अईला के आनंद मनावल आ आपन इष्ट देवता के धन्यवाद देवे के ।

सतुआन हरेक साल 13-14 अप्रैल के मनावल जाला । खगोल शास्त्र आ अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 21 मार्च के दिन-रात बराबर होला । ओकरा बाद दिन आ रात के अनुपात बदल जाला । दिन बड़ आ रात छोट होखे लागी ।  इ समय ह नया अन्न के आवे के । दलहन फसल के कटनी एही समय शुरू होला । गेहूं के हिंदी में “कनक” कहल जाला आ “कनक” के दोसरका अर्थ सोना भी होला । पियर दह-दह सोना के रंग में रंगायिल खेत के देख के किसान के मन पोरसा भर उछ्लत रहेला । सरसों, गेहूं के पौध गोटाइल बाली के भार से झुकल जात बा । माने धरती के देह से निकलल आ धरती के खून से पोसाइल आपन समृद्धि के धरती के ही समर्पित करत “त्वदीयं वस्तु देवर्षे, तुभ्यमेव समर्पये ” ।  
किसान धरती के सेवा करेले आ बदला में धरती आपन छाती फाड़ के फसल देवेली । एकर आनंद उहे जे माई आ बेटा के बीच होला । किसान माई धरती के धन्यवाद देवे खातिर वैशाख के एह विशेष दिन के उत्सव के रूप में मनावेले ।  एह दिन नया अन्न खाए के महातम ह ।  सतुआन में भी इहे होला बाकी तनिक  पुरनिया लोगन के वैज्ञानिक सोच आ लोक संस्कृति के बचावे के जेतना विध एह सतुआन में बा, उ दोसर परब में ना लउके ।

सतुआन के दिन सत्तुआ (नया अनाज विशेष चना-जौ के भूंज के चूरन कईल) के साथे आम के टिकोढा, गुर, दूध खाए आ नया घईला के पानी पिए के महातम बनवल गईल । आ इहे कुल्हि दान धरम करे के । सतुआन में सत्तुआ खाए के कहल जाला एकरा पाछे कुछ वैज्ञानिक सोच रहल ह । नया अनाज में गर्मी होला, नया अन्न के सेवन से कुछ शारीरिक प्रकोप भी होला । अनाज के इ गर्मी पेट में भी गरमी करेला । वायु विकार बढे के इ बड़का कारण ह । कबो कबो नया अन्न खयिला से पेट भी झरे लागेला , जेकरा के हमनी कीन्हा चईतार लागल कहाला । भुजल अन्न के चूरन पेट में वायु के दोष दूर करेला । कच्चा आम में अमल के गुण होला जे वायु विकार के दूर करेला आ पाचन शक्ति के बढ़ावेला । एह समय मौसम के बदलाव होला एह से शारीर में कफ भी उत्पात मचावेला एह से गुर भी शामिल कर लेवल गईल । साथ में घईला के ठंढा पानी माने शारीरिक गरमी जे नया अनाज से हो रहल बा ओकरा के शांत करे के । ओइसे एक दू बरखा के बाद जब वातावरण ठंढाला तब नया अनाज के गर्मी भी शांत हो जाला । बाकी लोक-परब के बहाने तन-मन के इलाज भी हो जाए आ उत्सव हो जाए त का हरज बा ! अब एतने उत्जोग में मय समाज के कईसे बंधाईल इ पुरुखा-पुरनियन के सोच रहे ।
लोक-परब के माने इ जेह में समाज के हरेक वर्ग के कुछ ना कुछ योगदान होखे । ए ही परब त्यौहार में सभे के आमदनी आ उत्सव के जरिया बने एकर ख़ास धेयान देवल गईल । आज के बिगड़ल परिभाषा में जजिमान आ पुरोहित के माने उहे जे पूजा पाठ करावे आ दान दक्षिणा लेवे आ देवे । दान देवेवाला जजिमान आ लेवेवाला पुरोहित । बाकी इ परिभाषा के मूल रूप में इ ना रहे । समाज में हरेक उ जजिमान रहे जे केहू से कवनो काम लेत रहे । दोसरका तरह से कहीं त “सेवा देवेवाला” आ “ सेवा लेवेवाला” एक दूसरा के जजिमान रहलन । आ इ सब कर्म प्रधान रहे । हज्जाम के सेवा देवे वालन के जेतना ग्राहक उ ओकर जजिमान , एही तरह समाज के चर्मकार, कुम्हार, मेहतर जईसन सेवावालन के भी जजिमान रहन । एतने ना सामाजिकता में जजिमान के क्रय बिक्री भी होत रहे । बंटाई भी होत रहे । इन्हा तक कि दान दहेज़ में भी जजिमनिका दियात रहे । माने दहेज़ लेवेवाला अब जजिमान के सेवाकर्ता हो जाई  आ एह से जेतना भी कमाई होई उ ओकर हो जाई । इ एगो समाजिकता के रूप रहे जेह में एक दोसरा के सहारा देके आगे बढ़ावे के धेयान राखल गईल रहे  ।  
सतुआन खाली किसान के परब ना ह, घुन्सारी झोंकेवाला, अनाज पिसेवाला, माली  आ कुम्हार सभे के परब ह । नया अनाज त किसान किंहा आईल, घुन्सारिवाला त खेती ना करे बाकी जब उ अनाज भुंजे के सेवा दी त कुछ अनाज ओकरो भेंटाई । माली आम के टिकोढा दी त अनाज ओकरो भेंटाई । गुर खातिर बनिया के आ नया घईला देके कोंहार के भी कुछ नया अनाज मिली । अब दान-धरम कई के गरीब-गुरुबा आ ब्राहमण के भी नया अनाज दियाई । माने मय समाज केहू तरे नया अन्न में आपन आपन हिस्सेदारी राखेला । आ जब इ नया अन्न घर में आईल त उपरवाला, आ इष्ट के धन्यवाद देत परब त मनबे करी ।
लोक-परब के इहे माने ह जेह में सब के सहभागिता आ सहभोजिता रहे । एह परब मे कवनों छुआछुत ना मानल जाए । अगर गौर करब त छठ जईसन लोक-परब में जे समाज मे सबसे अछूत रहल ओकरे बीनल दउरा आ सूप जादे पबितर । आ कुल एही तरह के बात बाकी लोक-परब मे भी बा । बस आपन नजरिया बदल के देखब त आपन पुरखन के सोंच पे गर्व होई ।
बाकी आज के समाज के रूप बदल गईल बा । आज के आदमी सामाजिक ना होके  व्यक्तिवादी हो गईल बा । संयुक्त परिवार जे समाज के छोट रूप रहे विलुप्त हो रहल बा आ साथ में लोगन के सामाजिकता के धारणा भी ।  बदलत परिस्थिति में समाज के कर्म क्षेत्र भी बदल गईल आ साथ में आवश्यकता भी । बाजारवाद हर जगहा आ गईल । शौपिंग मौल आ जनरल स्टोर सेवाकर्ता आ हमनी के उनके जजिमान । रोपेया के भावे परब त्यौहार मनायीं । अईसन बदलत वातावरण में लोक-परब मनावल खाली मन के बह्लावल ही कहाई ।  


(इ लेख भोजपुरी के लोकप्रिय ई-पत्रिका आखर के अप्रैल 2015 अंक में छप चुकल बा )

3 comments:

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  2. आदरणीय शशि जी -- पञ्च लिंकों की बदौलत आपके लेख पर आना हुआ | यद्यपि जादा समझ नहीं पाई पर बहुत अच्छा लगा कि अपनी माँ बोली को सम्मानित करने वालों की कमी नहीं | सादर आभार और नमन इस मधुर प्रयास के लिए | लेख नीक बा |

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  3. बहुत सुंदर लिखले बानीं भइया हर चीज समझ मे आवता।सबकर सहयोग का बा उ स्पष्ट हो गइल

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